उत्तराखंड/ गोविन्द सिंह
देहरादून को अस्थायी
राजधानी बनाया गया. ठीक है. बात समझ में आती है, क्यों कि तत्काल एक राजधानी का
भार ढोने को कोई शहर तैयार नहीं था. लेकिन पिथौरागढ़, मुनस्यारी और धारचूला के
नागरिक के लिए कितना दूर है देहरादून, किसी ने सोचा तक नहीं. यहाँ तक कि उत्तरकाशी
के दूरस्थ इलाकों के लिए भी वह उतनी ही दूर पड़ता है. चलो, मान लिया कि यह अस्थायी
राजधानी थी, लेकिन स्थायी राजधानी के लिए भी तो सोचना चाहिए था. एक तेलंगाना को
देखिए, किस तरह से पहले ही दिन से उन्होंने नई राजधानी के लिए स्थान का चयन किया
और उस पर युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया है. सुखद आश्चर्य यह है कि किसी स्तर पर
कोई मतभेद नहीं दिखाई पड़ा. अपने यहाँ तो कोई ऐसा काम नहीं होता जिस पर ‘नौ कनौजिए,
तेरह चूल्हे’ वाली कहावत चरितार्थ न होती हो.
अब कुमाऊँ अंचल को
ही देख लीजिए. एक ज़माना था, जब टनकपुर, हल्द्वानी और रामनगर की स्थिति एक जैसी थी.
तीनों ही पहाड़ के प्रवेशद्वार थे. आज इन तीनों द्वारों में से हल्द्वानी ही एक ऐसा
शहर है, जिसकी तरफ हुक्मरानों की नजर है. हल्द्वानी के लिए हर तरह की ट्रेनें हैं,
बसें हैं, सड़कें हैं, सुविधाएं हैं, लेकिन टनकपुर जैसे का तैसा है. टनकपुर ही
क्यों, खटीमा और बनबसा की भी वैसी ही दशा है. इसी वजह से पिथौरागढ़, चम्पावत का
विकास नहीं हो पा रहा है. बहुत पहले से कहा जाता रहा है कि यहाँ से काली नदी के
किनारे-किनारे धारचूला तक सड़क बनेगी और वहाँ पहुँचने तक साठ किलोमीटर का फायदा हो
जाएगा. कभी कहते हैं सुरंग रेल बनेगी. यह इलाका इतना संवेदनशील है, दो-दो पड़ोसी
देशों की सरहदें इन जिलों से लगती हैं, फिर भी हमारी सरकारों को कोई चिंता नहीं. ढंग
की रेल लाइन तक यहाँ नहीं है. चीन ने एकदम नेपाल की उत्तरी सीमा तक चमचमाती हुई
सड़कें बना ली, तब भी हमें कोई चिंता नहीं होती. जब इन इलाकों में रेडियो तक इस देश
का नहीं सुनाई देता, नेपाल का ही पकड़ता है, तो और बड़ी बुनियादी संरचनाओं की बात
क्या करें?
कायदे से देखा जाए,
तो उत्तराखंड के तमाम पहाड़ी शहरों में सबसे सुन्दर और संभावनाशील शहर पिथौरागढ़ था.
लेकिन योजनाविहीनता और उपेक्षा के कारण आज उसकी क्या हालत हो गयी है, यह साबित
करने की जरूरत नहीं है. हमारे पास पर्यटन और तीर्थाटन के अलावा बेचने के लिए और
क्या है? लेकिन क्या आज पिथौरागढ़ हमारे पर्यटन मानचित्र पर है? मुनस्यारी को छोड़
दें तो और कहीं भी क्या राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक पहुँचते हैं? इसलिए केवल
देहरादून के इर्द-गिर्द विकास मत कीजिए. यह न भूलिए कि इस प्रदेश में और भी ऐसे
इलाके हैं, जो आपके विकास की बाट जोह रहे हैं. असंतुलित विकास भविष्य में आपके लिए
ही भस्मासुर बनेगा. (खटीमा दीप में प्रकाशित)
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