रविवार, 9 नवंबर 2014

उत्तराखंड में उच्च शिक्षा की बदहाली


उच्च शिक्षा/ गोविन्द सिंह 

उत्तराखंड की कुल आबादी एक करोड़ से कुछ ही अधिक है. फिर भी हमारे पास 19 विश्वविद्यालय और 80 से ज्यादा सरकारी और 300 से ज्यादा निजी महाविद्यालय और उच्च शिक्षा के संस्थान हैं. मात्रा के हिसाब से देखा जाए तो यह तस्वीर बुरी नहीं है. लेकिन गुणवत्ता के लिहाज से देखें तो हालत कुछ अच्छी नहीं दिखती. वर्ष 1973 से पहले हमारे पास एकमात्र पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय था. लेकिन उसकी ख्याति पूरे देश में थी. वह देश में हरित क्रान्ति का अग्रदूत बना. उसके बाद कुमाऊँ और गढ़वाल विश्वविद्यालय आये. अल्प संसाधनों के बावजूद उन्होंने देश को अनेक हीरे दिए, जिन्होंने देश-विदेश में नाम कमाया और राष्ट्र-मुकुट की शोभा बने. उन्होंने न सिर्फ अपना नाम किया बल्कि प्रदेश का भी सर ऊंचा किया. इस कालेजों-विश्वविद्यालयों ने देश भर में शिक्षा के मानक कायम किये. घास-फूस के छप्परों और टूटी-फूटी इमारतों से बड़े-बड़े वैज्ञानिक निकले, लेखक-बुद्धिजीवी उभरे और सरहद पर रखवाली करने वाले वीर सैनिक पैदा हुए. अब हमारे पास बहुत से कालेज हैं, विश्वविद्यालय हैं, फिर भी श्रेष्ठ छात्र नहीं निकल रहे. फ़ौज को छोड़ दिया जाए, तो जिस अनुपात में यहाँ से पहले श्रेष्ठ विद्यार्थी निकल कर देश सेवा में जाते थे, अब नहीं निकल पा रहे. पढाई का स्तर निरंतर गिर रहा है. हमारे शिक्षा-मंदिरों से डिग्रीधारी तो हर साल बहुत निकल रहे हैं, पर उनमें कितने वाकई काबिल हैं, कहना मुश्किल है. बावजूद इसके, उच्च शिक्षा में सकल दाखिला अनुपात (जी ई आर) 20 फीसदी के आसपास ही है. पूरे समाज में उच्च शिक्षा को लेकर एक गिरावट साफ़ देखी जा सकती है. सबको शिक्षित करने की हमारी यात्रा अभी बहुत लम्बी है. उच्च शिक्षा की बदहाली के लिए किसी एक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. हम सब इसके लिए जिम्मेदार हैं. यह ठीक है कि हमें अपनी सम्पूर्ण आबादी को शिक्षित करना है. लेकिन यह भी देखना है कि जो शिक्षा उन्हें दी जा रही है, वह स्तरीय हो.
ऐसे समय में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की भूमिका बढ़ जाती है. मुक्त और दूरस्थ शिक्षा जहां एक तरफ उन युवाओं के लिए सुनहरा अवसर लेकर आती है, जो किसी वजह से अपनी पढाई पूरी नहीं कर पाए या जो दूर-दराज के अभावग्रस्त इलाकों में होने से उच्च शिक्षा से दूर रहे. आज दुनिया भर में दूरस्थ शिक्षा लोकप्रिय हो रही है तो इसीलिए कि यह विद्यार्थी की अपनी सुविधा के साथ और बिना किसी तरह के बंधनों के, शिक्षा हासिल करने का अवसर देती है. एक सचाई यह भी है कि पारंपरिक शिक्षा लगातार महंगी हो रही है. ऐसे में युवा दूरस्थ शिक्षा की ओर आकृष्ट हो रहे हैं.

लेकिन एक बात ध्यान से सुन लें, दूरस्थ शिक्षा न प्रायवेट परीक्षा देने जैसा मामला है और न ही पुराने समय का पत्राचार पाठ्यक्रम. यह पद्धति वैसी ही शिक्षा, बल्कि उससे भी बेहतर शिक्षा शिक्षार्थियों को देने का वचन देती है, जो पारंपरिक क्लास-रूमों में दी जाती रही है. ब्रिटेन के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में वहाँ की ओपन यूनिवर्सिटी भी शामिल है तो यूं ही नहीं है. वहाँ ऑक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज की टक्कर का शोध होता है. आज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय भी अपने दूरस्थ शिक्षा विभाग खोल रहे हैं, क्योंकि वे उन होनहार छात्रों तक पहुंचना चाहते हैं, जो किसी कारण उनकी देहरी से दूर रह गए. सचमुच दूरस्थ शिक्षा ने देश-काल की दीवारों को तोड़ दिया है. इसलिए मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के बारे में अपने पूर्वाग्रहों को त्यागिए और उसे अपनाकर मजबूती प्रदान कीजिए. (४-५ नवम्बर, २०१४ को देहरादून में आयोजित संगोष्ठी की स्मारिका में प्रकाशित)  

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