मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

क्रिकेट के मुक्त गगन का नया सितारा है उन्मुक्त

शाबाश/ गोविंद सिंह

उन्मुक्त चंद उत्तराखंड की भूमि से उपजा एक नया सितारा है, जिसकी तरफ सबकी निगाहें लगी हुई हैं. वह भविष्य का महेंद्र सिंह धौनी है, सचिन तेंडुलकर है. उत्तराखंड के लिए भविष्य की आशा है. जब 15 अप्रैल को उसने अपनी कप्तानी और नाबाद 112 रनों से आस्ट्रेलिया को हराते हुए अंडर 19 की सीरीज पर कब्जा जमाया तो सारे देश की नजर उसकी तरफ गयी. उत्तराखंड के अखबारों के लिए यह एक बड़ी घटना थी. मेरे जैसे क्रिकेट-अनभिज्ञ व्यक्ति के लिए भी यह आतंरिक खुशी से भरी घटना थी. शायद पहाड़ के हर उस होनहार के लिए यह एक प्रेरक घटना थी, जिसके भीतर अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद कुछ कर गुजरने की आग सुलग रही है.
उन्मुक्त पर लिखने से पहले उसके पिता और चाचा का उल्लेख जरूरी है, क्योंकि उसके चाचा सुन्दर चंद ठाकुर के जरिये ही मेरा संपर्क इस परिवार से हुआ. ये दोनों भाई पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज की उपज हैं और वहाँ की साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के सक्रिय साथी. बड़े भाई भरत ठाकुर अध्यापक बन कर दिल्ली आ गए और छोटे भाई सुन्दर शार्ट सर्विस कमीशन लेकर फ़ौज में चले गए. पांच साल में ही सुन्दर भी फ़ौज में अपनी अवधि पूरी कर के दिल्ली आ गए. शायद यह 1996-97 के आस-पास का समय रहा होगा, जब सुन्दर जी हमारे साथ नवभारत टाइम्स में काम करने आये. वह अत्यंत उत्साही, मित्र और रचनात्मक ऊर्जा से सराबोर साथी रहे हैं. उसी बीच एक-दूसरे के घर आना-जाना शुरू हुआ. तब उनकी शादी नहीं हुई थी. भाभी और भैया भरत ठाकुर के साथ ही रहा करते थे. उन्मुक्त यानी लवी तब 4-5 साल का रहा होगा. कुछ ही दिनों बाद पता चला कि भाई साहब यानी भरत जी लवी को क्रिकेट खिलाने के लिए स्टेडियमों के चक्कर लगाते हैं. मुझे मन ही मन यह अटपटा लगता था कि क्यों अभी से इतने छोटे बच्चे को खेल के अनुशासन में झोंक रहे हैं. लेकिन दोनों भाइयों को जैसे पहले से ही यह पता था कि लवी को क्रिकेटर ही बनना है. बीच-बीच में सुन्दर जी बताया करते कि लवी एक दिन अच्छा क्रिकेटर बनेगा. वे लवी को लेकर बहुत उत्साह में रहते. सुन्दर जी के विपरीत भरत जी अत्यंत सौम्य और गंभीर व्यक्ति हैं. उनके लिए बड़ी से बड़ी खुशी भी जैसे बहुत मामूली बात होती है. बेटे को लेकर उनकी साधना का कोई सानी नहीं. वे एक श्रेष्ठ शिक्षक, बेहतरीन गृहस्थ और जिम्मेदार पिता हैं. अपनी तमाम आर्थिक दिक्कतों के बावजूद वे लवी के प्रशिक्षण को लेकर हमेशा उद्यत रहे. सुन्दर जी से पता चलता कि प्रशिक्षण के लिए उन्हें अनेक बार कर्ज भी लेना पड़ा. लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी. उनके चेहरे पर हमेशा एक मंद-स्मित मुस्कान तैरती रहती. मुझे कई बार अपने बेटे-बेटी की पढाई के सिलसिले में उनके पास जाने का मौक़ा मिला. वे चुटकियों में सार बता देते और बच्चे समस्या समझ जाते. जब उन्हें श्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार मिला तो हम सब मित्रों को बड़ी खुशी हुई. लेकिन उनके लिए जैसे इसका कोई महत्व ही नहीं था. दूसरी तरफ सुन्दर जी ने अपनी पत्रकारीय तरक्की के बाद लवी के लिए हर संभव समर्थन जुटाने का काम किया. हमें लगता है कि किसी भी बच्चे की तरक्की के लिए सही समय पर सही ब्रेक मिलना बहुत जरूरी होता है. और इस लिहाज से सुन्दर जी का योगदान सदैव याद किया जाएगा. यहाँ भाभी राजेश्वरी का नाम लिए बिना कथा अधूरी रहेगी, जिनके भीतर कूट-कूट कर स्वाभिमान भरा हुआ है. वे चुपचाप परिवार की तरक्की के लिए समर्पित रही हैं.
लवी जैसे बच्चे अपने उत्तराखंड में इफरात में हो सकते हैं, जिनके भीतर कुछ कर गुजरने की तमन्ना भरी हुई है. इस प्रदेश को लवी जैसे ही बच्चों की जरूरत है जो हमारे बच्चों के रोल मॉडल बन सकें. जो अभावों के बावजूद आगे बढ़ने को कटिबद्ध हों. जिनके पास पहले से ही सारे साधन और सिफारिशें मौजूद हों, वे आगे बढ़ते हैं, तो कोई खास खुशी नहीं होती. लेकिन जब कोई  बच्चा अभावों के बीहड़ों को चीरता हुआ आगे बढ़ता है, तो सचमुच सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. मुझे उन्मुक्त की तरक्की पर उस दिन सबसे ज्यादा खुशी हुई जिस दिन पता चला कि वह सबसे कम उम्र का खिलाड़ी है, जिसे आईपीएल दिल्ली की टीम के लिए चुना गया. और इस बार उसकी कप्तानी में अंतर्राष्ट्रीय सीरीज जीतने पर वह खुशी कई गुना बढ़ गयी. आने वाले दिनों में वह हम सबके सीने और चौड़े करेगा, यही उम्मीद है. इस हीरे को गढ़ने वाले इन ठाकुर वन्धुओं को हार्दिक बधाई.       

11 टिप्‍पणियां:

  1. माता-पिता और परिवार के सद्गुण-प्रभाव से तराशा हुआ हीरा, होनहार. उसकी मेहनत का अध्‍याय भी कम महत्‍वपूर्ण न होगा.

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    1. आपने एकदम सही लिखा है. बच्चे में काबलियत है, तभी वह आगे बढ़ सकता है. मैंने सुन्दर चंद ठाकुर से अनुरोध किया है कि वे इस बारे में प्रकाश डालें.

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  2. लीजिए, सुन्दर चंद ठाकुर की टिप्पणी अपने भतीजे के बारे में:
    गोविन्द जी ने लाजवाब करने वाली बातें लिखी हैं. इसमें कोई शक नहीं की फ़ौज छोड़ने के बाद मैंने अपनी सारी ऊर्जा उन्मुक्त पर लगायी. लेकिन मै यह भी कहना चाहूँगा कि उसमे कुछ ऐसे गुण हैं जो उसे खास बनाते हैं. 12th तक हमारे बीच contract था कि वह मेरी हर बात मानेगा. हर बात में दस किलोमीटर दौड़ाने से लेकर लगातार कई घंटे पढाई या ध्यान करने या कई घंटों तक प्रैक्टिस करना शामिल रहा.आज भी मेहनत को लेकर वह कोई समझौता नहीं करता. अलबत्ता अब मै बहुत कुछ उससे सीखता हूँ. वह क्रिकेट कि प्रैक्टिस के अलावा पढ़ता बहुत है...फिटनेस पर बहुत मेहनत करता है और उसमे सीखने कि बहुत ललक है. दिल्ली में न जाने कितनी गर्मियां उसने बसों में धक्के खाए. कई बार उसे देखकर तरस आता था कि उस पर मै ज्यादा लोड दाल रहा हू..डर भी लगता था कि अगर कुछ नहीं बन पाया तो! लेकिन यह उसका खुद पर भरोसा था जिसने मुझे भी लगातार ताकत दी. गोविन्द जी ने बड़े भाई के लिए भी ठीक लिखा है. वह बिना कुछ कहे support करता रहा. जो भी हो, अभी सफ़र की शुरुआत है. क्रिकेट में कुछ भी हो सकता है, यहाँ बहुत तेजी से स्थितियां बदलती हैं. उन्मुक्त को बहुत लोगों का support मिला है. बहुत लोगों कि शुभकामनायें. ये सब बना रहेगा तो उसे सफलता मिलकर रहेगी क्योंकि खुद वह भटकने वालो में नहीं और जानता है कि there is no shortcut to success . इस भावपूर्ण लेख के लिए गोविन्द जी का बहुत आभार!

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  3. "जब कोई बच्चा अभावों के बीहड़ों को चीरता हुआ आगे बढ़ता है, तो सचमुच सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है."....
    गोविन्द जी , बहुत बहुत धन्यवाद, इस जानकारी के लिए.
    इस 'सपूत' के बारे में बहुत पहले श्री बी . सी . तिवारी जी ने बताया था.
    "उन्मुक्त चन्द " को हार्दिक बधाइयाँ.

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  4. उन्मुक्त के बहाने कवि सुन्दर चन्द ठाकुर का भी एक नया रूप सामने रखने के लिये आपके ब्लाग का आभार

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  5. बटरोही:
    उन्मुक्त के बारे में मैंने बहुत साल पहले उसके चाचा सुन्दर चंद ठाकुर से सुना था. मेरी रुचि क्रिकेट में बहुत अधिक नहीं है, मगर उन्मुक्त की उपलब्धियों के बारे में जानकर, और उससे पहले मेरे गाँव के पास के ही महेंद्र सिंह धोनी की उपलब्धियों के बारे में जब सुनता था, इस खेल और इन बच्चों के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई. आज गोविन्द सिंह जी ने उस जिज्ञासा को काफी हद तक पूरा किया, इसके लिए गोविन्द जी को बधाई. साथ ही उन्मुक्त और छोटे भाई कवि, कथाकार और पत्रकार सुन्दर चंद ठाकुर को भी बधाई.

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  6. भरत चंद ठाकुर:
    Thank you sir! For being a witness to Unmukt's growth and bringing this to public in your lucid language. It should inspire other children and parents. Don't forget you have been also great support to us. So let's all cheer for Unmukt's success.

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  7. सर उन्मुक्त के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. अभावों के बीच अगर आप आगे निकलते हैं तो यह उपलब्धि बड़ी बन जाती है. सुंदर चंद ठाकुर सर से जब भी बात होती थी तो उन्मुक्त का जिक्र जरुर करते थे. वो उसको लेकर हर पल सोचते रहते थे. उन्मुक्त की कामयाबी पर उसे ढेर सारी बधाइयाँ

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  8. Pooran Manral:
    Ausyralia ki serjamin per unmukta chand ne under 19 cricket ka netratva karte hue jo vijaygatha likh di hei woh sabke liye garav ki baat hei.uttarakhand ke is sapoot per hamein naaz hei.pahad pratibhaun ka aagar hei,gobind ji apne pratibha sampann unmukta ke bare mein jaankari dekar pahad ke uvaun ko prerna di hei.

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  9. साधुवाद गोविंद जी, उन्मुक्त के बारे में इस जानकारी और सुंदर लेख के लिए- नवीन जोशी

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