देश तिरसठवां गणतंत्र दिवस मना रहा है. इधर पूरा उत्तराखंड चुनाव प्रचार के आगोश में है. इस प्रदेश को बने हुए ११ साल हो गए हैं. खूब नारे उछाले जा रहे हैं. एक से बढ़ कर एक वायदे किये जा रहे हैं. लेकिन मतदाता जानता है कि इन ग्यारह वर्षों में वह बार बार छला गया है. चुनाव एक तरह से लोकतंत्र का उत्सव न हो कर छल और धोखा खा जाने का समय बन गया है. क्योंकि उत्तराखंड आंदोलन के वक्त जो सपने बुने गए थे, उन्हें बार बार विखरते देखा है.
कल के अखबार में एक शीर्षक था, अंग्रेजो तुम फिर से लौट आओ. बहुत देर तक इस शीर्षक पर नजरें टिकी रहीं. जिस आम वोटर के कथन पर यह शीर्षक रखा गया था, उसकी मनःस्थिति की कल्पना करता रहा. यह केवल एक व्यक्ति की मनःस्थिति नहीं है. देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है, जो ऐसा सोचते हैं. सन चौरानबे में पूरे उत्तराखंड के युवा जब उबल रहे थे, तब वे भी यही सोच रहे थे कि इस उपेक्षा से तो अंग्रेजों का ही शासन बेहतर था. सन २००० में उत्तराखंड बना, तथाकथित रूप से अपने लोग सत्ता में आये, लेकिन सपने फिर भी अधूरे ही रहे. इस बीच लोगों को यह कहते सुना गया कि इस से तो यू पी में ही भले थे. और यह बात वे लोग ज्यादा कहते रहे हैं, जो उत्तराखंड को लेकर सबसे ज्यादा उग्र थे. आज ग्यारह साल बाद फिर आम मतदाता खुद को छला गया महसूस कर रहा है. क्यों? क्योंकि हमारे रहनुमाओं ने अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझा. एक नए राज्य के निर्माण के लिए जितनी मेहनत, ईमानदारी और दृष्टि की जरूरत थी, क्या वह हमारे नेताओं में है? आज हिमाचल सचमुच हिमाचल बना है तो उसके पीछे यशवंत परमार की १५ साल की अथक मेहनत और ईमानदार प्रशासन है.
लोग यों ही नहीं फेंकते नेताओं पर जूते-चप्पल. आप भले ही उन्हें पागल कह दें, लेकिन वे भी हमारे ही सामूहिक मनोविज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं. विखरे लोगों के भाव जब घनीभूत होकर किसी एक कमजोर व्यक्ति के मन में उतरते हैं, तब इस तरह की घटनाएं बढ़ती हैं. यह गुस्सा अलग अलग रूपों और लोगों पर उतरता है. आज पूरे देश में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं तो इसीलिए कि हमारे राजनेताओं के प्रति जनता के मन में नफरत घर कर गयी है. कहीं न कहीं तो उसका विस्फोट होना ही है. राजनीति में अब विचारों की कोई जगह नहीं रह गयी है. जो पार्टियां पहले विचारों की राजनीति किया करती थीं, वे भी अब दूकान लगाए बैठी हैं. सचमुच अब राजनीति एक वेश्या की तरह हो गयी है. कहा जा सकता है कि उत्तराखंड भी देश के भीतर ही है. उसकी राजनीति यूपी की राजनीति से कैसे भिन्न हो सकती है? जी हाँ, भिन्न नहीं हो सकती है, लेकिन भिन्न होने की कोशिश तो कर सकती है. क्या पिछले ११ वर्षों में हमारे नेताओं ने राज्य की हालत उत्तर प्रदेश से भी बदतर नहीं कर दी है! इसके लिए हम सब दोषी हैं. चुनाव एक मौका जरूर है, अच्छे लोग चुनने का, लेकिन पता नहीं क्यों, कहीं से भी आशा की कोई किरण नहीं दिखाई देती.
Govind sir, HP se UK ki tulna nahi ho sakti. Wahan YPS ka vision aur devotion ka natija tha ki aaj HP kahin se Kahin pahunch gaya. Wahan YPS ke Awahan pe logo ne APPLE ko apni arthiki ka adhar banaya, Isme we kamyab rahe aaj natija samne h. Iske viprit UK me doordarshita sarkari dhan ko thikane lagane me lagai gayi. Iska natija bhi samne h.
जवाब देंहटाएंGovind sir, HP se UK ki tulna nahi ho sakti. Wahan YPS ka vision aur devotion ka natija tha ki aaj HP kahin se Kahin pahunch gaya. Wahan YPS ke Awahan pe logo ne APPLE ko apni arthiki ka adhar banaya, Isme we kamyab rahe aaj natija samne h. Iske viprit UK me doordarshita sarkari dhan ko thikane lagane me lagai gayi. Iska natija bhi samne h. PANKAJ JOSHI, HH, HALDWANI
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये सच है कि राजनीति न तो अब विचारों से चलती है और न नैतिकता से... तरक्की और आम आदमी के हितों के बारे में सोचने की फुर्सत किसी को नहीं... सब अपना अपना हित साधने में लगे हैं... लेकिन क्या अंग्रेज़ों के ज़माने में लौट जाने और उसे बेहतर मान लेने से मुश्किलें खत्म हो जाएंगी.. निराशा की ये पराकाष्ठा आपको कहां ले जाती है... आप कोई विश्लेषण कर लें... अंग्रेजों ने इमारतें बनवाईं, कानून बनाए, आदमी को गुलाम बनाने की कला सिखाई और सत्ता के वे तौर तरीके सिखाए जो आज बेहद विकृत रूप में नज़र आने लगे... ऐसे में उत्तराखंड हो या देश का कोई भी हिस्सा हम उनकी तुलना एक दूसरे से नहीं कर सकते... बदलते वक्त की कुछ ज़रूरतें हैं, कुछ मजबूरियां... शायद हमें ही अब अपना नज़रिया बदलना होगा, बेशक इंसानियत और संवेदना को बरकरार रखते हुए...
जवाब देंहटाएंyah aaj ki behtareen tippani hai. rasta isee ke beech nikalna hai. magar wah rasta n angrejon ka hoga n hamari rajneeti ka. uttarakand ke yuwa naye rashte ko tarash rahe hein, intajar karein.
जवाब देंहटाएं