मीडिया/ गोविन्द सिंह
जब भी पत्रकार शब्द
सामने आता है, एक छवि मानस पटल पर उभरती है, कुरता-पाजामा और चप्पल पहने एक व्यक्ति की, जिसने मोटा चश्मा पहन
रखा है, दाढ़ी बढ़ी हुई है. कंधे में झोला है
जिसमें डायरी, टेप रिकॉर्डर, कैमरा और कलम आदि हैं. यह पत्रकार की पारंपरिक छवि है, जिसमें हाल के
वर्षों में बड़ी तेजी से परिवर्तन आया है. सबसे बड़ा परिवर्तन उसके औजारों में आया
है. कागज़-कलम या झोले की जगह अब लैपटॉप, स्मार्ट फोन और अत्याधुनिक गैजेटों ने ले
ली है. टेलीविजन पत्रकारिता में निस्संदेह टेक्नोलोजी पत्रकार पर हावी रहती है. नए
गैजेटों और टेक्नोलोजी के बिना किसी टीवी रिपोर्टर की कल्पना ही नहीं की जा सकती
है. टीवी में शब्दों की बजाय चित्रों का महत्व ज्यादा होता है, लिहाजा किसी भी
संस्थान की पूरी ताकत सबसे पहले बेहतरीन और बेजोड़ चित्र जुटाने में लगती है. पत्रकार
के औजारों में जल्द ही एक नया औजार जुड़ने जा रहा है, वह है, ड्रोन यान. यानी एक
ऐसा लघु विमान जो मुश्किल से मुश्किल जगह से दृश्यों को क़ैद करके ले आये. खबर और
विजुअल जुटाने के लिए अमेरिका में इसका इस्तेमाल शुरू हो गया है. भारत में भी
पिछले साल के आम चुनावों में इसका सीमित प्रयोग हो चुका है, लेकिन वास्तव में
ड्रोन के उपयोग को लेकर दुनिया भर में विवाद भी खड़े हो रहे हैं कि कहीं इससे लोगों
की निजता का हनन तो नहीं हो रहा? अमेरिका में संघीय विमानन प्रशासन इसके लिए नया
क़ानून बनाने में जुटा है तो पत्रकारिता संस्थान और बड़े मीडिया घराने इसके लिए
शिक्षण-प्रशिक्षण की तैयारियों में जुट गए हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति
बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान एक मुद्दा यह भी था कि अमेरिका ड्रोन
प्रौद्योगिकी भारत को दे. फिलहाल कुछ भारतीय कम्पनियां अमेरिका से ड्रोन यान सीधे
आयात कर रहे हैं, लेकिन टेक्नोलोजी भी आ जाए तो यहीं ड्रोन बनने लग जायेंगे. इस
तरह अनेक क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है. फिल्म और मीडिया व्यवसाय के
लिए खबरें और तस्वीरें जुटाने का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमे ड्रोन की मदद
से जबरदस्त बदलाव आ सकता है. कहा जा रहा है कि ड्रोन प्रौद्योगिकी के जरिये जोखिम
भरी घटनाओं की फील्ड रिपोर्टिंग में आमूल परिवर्तन आ जाएगा. कितनी दिलचस्प बात है
कि जिस ड्रोन टेक्नोलोजी को हम वजीरिस्तान के उग्रवाद बहुल क्षेत्रों में बम और
मिसाइल गिराने वाले ड्रोन विमानों के रूप में जानते रहे हैं, वही टेक्नोलोजी हमें समाचार
संकलन में मदद पहुंचाएगी! लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती है. जैसा कि मार्शल
मैक्लुहान ने कहा है, माध्यम ही सन्देश है, तो ड्रोन जब खबर लाने का काम करेगा तो
खबर का चरित्र भी बदलेगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. इसके साथ ही ढेर सारे
नैतिक प्रश्न भी जुड़े हैं. अमेरिकी लोग पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं कि
ड्रोन की पत्रकारिता उसकी शुचिता को बचाए रखते हुए खबर-संकलन करेगी भी या नहीं!
अमेरिका में चार
राज्यों ने रिपोर्टिंग के लिए ड्रोन के उपयोग पर प्रतिबन्ध लग दिया है. 39 राज्य इस पर अब भी विचार कर रहे हैं. लेकिन
व्यावसायिक उपयोग वाला ड्रोन अभी बाजार में आया भी नहीं कि कई बड़ी मीडिया कंपनियों
ने ड्रोन खरीदने और अपनाने की घोषणा कर डाली है. दुनिया में पेशेवर पत्रकारिता
सिखाने वाले सबसे पुराने मिसौरी विश्वविद्यालय ने ड्रोन पत्रकारिता का पाठ्यक्रम
शुरू कर दिया है, पत्रकारों की ट्रेनिंग शुरू हो गयी है. नेब्रास्का विश्वविद्यालय
के लिंकन पत्रकारिता कालेज में ड्रोन पत्रकारिता की लैब बन गयी है. वहाँ छात्र
ड्रोन के प्लेटफार्म तैयार कर रहे हैं. अमेरिका में ड्रोन पत्रकारों की पेशेवर
संस्था भी अस्तित्व में आ चुकी है और तेजी से लोकप्रिय भी हो रही है.
ड्रोन टेक्नोलोजी पर
आधारित लघु यान कमर्शियल उपयोग के लिए तैयार हो गए हैं. ओबामा सरकार ने संघीय विमानन
प्रशासन को 2015 के अंत तक इसके लिए नियम-क़ानून बनाने को कह दिया
है. कहा जा रहा है कि वह दिन दूर नहीं जब अमेरिकी आकाश में लगभग 30 हजार ड्रोन उड़ान भर रहे होंगे! इनके जरिये
जासूसी, फोटोग्राफी, रिपोर्टिंग, फिल्म निर्माण, हवाई सर्वेक्षण, आपदाग्रस्त
इलाकों का सर्वेक्षण, खोज एवं बचाव कार्य, वन्यप्राणियों की गणना, फसलों का
सर्वेक्षण, जंगल की आग का सर्वेक्षण, सुदूर और
दुर्गम इलाकों तक चिकित्सकीय सुविधा पहुँचाने जैसे काम किये जा सकते हैं. जहां तक
रिपोर्टिंग का सवाल है, दंगा-फसाद हो या युद्ध, प्राकृतिक आपदा हो या हिंसक
प्रदर्शन या फिर स्टिंग ऑपरेशन, ये तमाम काम ड्रोन के कैमरों के जरिये बहुत ही
प्रामाणिक अंदाज में हो सकते हैं. अब यह टेक्नोलोजी काफी सस्ती भी हो गयी है. जहां
आपको एक हेलीकोप्टर के एक घंटे के 1500 डॉलर देने पड़ते थे, वहाँ 1000 डॉलर में पूरा ड्रोन ही आ जा रहा है. असल में ड्रोन का
नाम चाहे जितना बदनाम हो, यह एक इंटेलीजेंट मशीन है, जो रिमोट से परिचालित होती
है, एकदम सटीक जीपीएस सिस्टम से लैस होने से यह अचूक भी है और सबसे बड़ी बात, बिना
आदमी के उडती है. यानी आदमी की जान को कोई ख़तरा भी नहीं. कहा जा रहा है कि ये
पत्रकारिता के जोखिम भरे पेशे के लिए वरदान साबित हो सकता है. इसीलिए अमेरिका में लोग
इसे उत्सुकता भरी निगाह से देख रहे हैं. एक बार पश्चिम में आ गया तो फिर भारत आते
देर नहीं लगेगी. लेकिन असली सवाल यह है कि इससे पत्रकारिता के पवित्र उसूलों को
चोट नहीं पहुंचनी चाहिए.
भारत प्रतिरक्षा उपयोग के लिए तो
ड्रोन खूब खरीदता रहा है, लेकिन अभी तक पेशेवर कामों के लिए ख़ास प्रोत्साहन नहीं
दिया गया है. भारत का नागरिक विमानन महानिदेशालय भी पेशेवर ड्रोन के उपयोग हेतु
दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है ताकि इसका
दुरुपयोग न हो. हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यही है की हम बिना सोचे-समझे, बिना
आधारभूमि तैयार किये किसी भी नई चीज को अपना लेते हैं. यह नहीं देखते कि उसका क्या
प्रभाव हमारी परिस्थितियों पर पड़ेगा. किसी और देश की परीक्षित चीज को ज्यों का
त्यों अपनाना ठीक नहीं है. इसलिए ड्रोन के दुरुपयोग को रोकने और उसके दुष्प्रभावों
से खुद को मुक्त रखने के लिए यह जरूरी है कि ड्रोन को लेकर पूरी तैयारी कर ली जाए.
जरूरी यह भी है कि हमारे मीडिया घरानों और पत्रकारिता संस्थानों को भी इस दिशा में
सोचना चाहिए क्योंकि ड्रोन से कुल नफ़ा-नुक्सान जो भी होना है, वह भारतीय
पत्रकारिता को ही होना है. (अमर उजाला, १४ जून, २०१५ में प्रकाशित लेख का असंपादित रूप.)
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