सोमवार, 26 जनवरी 2015

महान कार्टूनिस्ट लक्ष्मण नहीं रहे

संस्मरण/ गोविन्द सिंह 

साथियो, अभी-अभी पता चला है कि महान कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण हमारे बीच नहीं रहे. पुणे के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया. वे ९४ वर्ष के हो गए थे. अभी पिछले हफ्ते ही भारतीय कार्टून को याद करते हुए हमने उन्हें याद किया था. क्या पता था कि वे इतनी जल्दी चले जायेंगे. हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि. 
उनसे पहले भारत में शंकर को महानतम कार्टूनिस्ट के रूप में जाना जाता था, लेकिन पिछले ५० साल में वे भारतीय राजनीतिक कार्टून के बेताज बादशाह थे. उनका आम आदमी भारत के तमाम नागरिकों का सामूहिक प्रतिनिधत्व करता था. वे मानव मन की पीड़ा के बारीक चितेरे थे. उसके दर्द की जैसी बारीक पकड़ उन्हें थी, वह शायद ही किसी और में हो. १९८२ से १९८६ तक मुंबई के टाइम्स भवन की दूसरी मंजिल में काम करते हुए, उन्हें रोज सफेद टीशर्ट, काली पैंट और गले में चश्मा लटकाए हुए देखते थे. उनकी छोटी-सी केबिन के बाहर रखे स्टूल पर ढेर सारी ड्राइंग शीट्स पडी होती, जिन पर उनके अधबने कार्टून होते थे. जब तक वे पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो जाते, वे बनाते ही रहते. एक कार्टून को बनाने से पहले वे कमसे कम २० शीट्स बर्बाद करते होंगे. जब तक कार्टून नहीं बन जाता, उनके चेहरे पर तनाव रहता था. आज सोचता हूँ वे बेकार शीट्स ही संभाल ली होतीं तो कितने काम की होतीं. 
वे किसी से बोलते नहीं थे. उनका बेटा श्रीनिवास लक्ष्मण हमसे कुछ ही बड़ा रहा होगा. जब हम ट्रेनी थे तब वह  टाइम्स में रिपोर्टर हो गया था और एविएशन बीट देखता था. वह बड़ा भोला लगता था लेकिन कभी सहज ढंग से बातचीत नहीं करता था.  कुछ दिनों बाद वह अपने पिता से अलग रहने लगा था. हमें यह बात समझ नहीं आयी. हम मजाक में कहते बाप की ही तरह इसका भी एक पेच ढीला है. 
कई बार उनका इंटरव्यू लेने की कोशिश की, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. शायद हमारे साथी सुधीर तैलंग शुरू में उनका इंटरव्यू लेने में कामयाब हुए थे. हालांकि बाद के दिनों में वे सुधीर से चिढ़ने लगे थे, ऐसा तैलंग को लगता था. जब तैलंग के कार्टून इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया में छपने लगे तो एक बार लक्ष्मण ने उसके सम्पादक केसी खन्ना से शिकायत कर दी, जिसके बाद वीकली में तैलंग के कार्टून छपने बंद हो गए. बाद में वह इकनोमिक टाइम्स में कार्टून बनाने लगा, जिसके सम्पादक उन दिनों हैनन एजकील हुआ करते थे. वे मूलतः यहूदी थे. तैलंग उनसे बहुत खुश रहने लगा. कहने का मतलब, शीर्ष पर पहुंचा हुआ व्यक्ति भी कहीं न कहीं से डरता है. तैलंग उन दिनों हमारे साथ हिन्दी में ट्रेनी था, उसमें भी उन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी दिखने लगा.  कहते हैं, ऐसा ही उन्होंने मारियो मिरांडा के साथ किया था. खैर बाद में सुधीर नवभारत टाइम्स दिल्ली में स्थायी हो गया तो चिंता ही ख़त्म. 
लेकिन असल बात यह है कि लक्ष्मण के बराबर व्यंग्य चित्रकार आजादी के बाद और कोई नहीं हो पाया. अबू, लक्ष्मण और सुधीर दर अपने समय के तीन महान कार्टूनिस्ट थे. पर शिखर पर लक्ष्मण ही थे.  


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