२७ अगस्त को राष्ट्रपति
के हाथों गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार मिलने के बाद से ही सोशल मीडिया में परिजनों,
रिश्तेदारों, दोस्तों, साथी-पत्रकारों, साथ काम कर चुके मित्रों, गुरुजनों और
छात्रों के प्यार-भरे सन्देश पाकर मैं गदगद हूँ. आज के जमाने में एक लाख का
पुरस्कार कोई ख़ास मायने नहीं रखता, फिर कोई पहली बार यह पुरस्कार नहीं मिल रहा,
हमसे पहले ४८ लोगों को यह पुरस्कार मिल चुका है. मेरे साथ भी चार लोगों को मिला. लेकिन
फिर भी मेरे शुभ चिंतकों ने जिस तरह की गर्मजोशी दिखाई है, वह मेरे लिए वाकई बेहद
प्रेरक है. मैं आप सभी मित्रों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ.
यहाँ मैं उन गुरुजनों
को याद करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ, जिनकी प्रेरणा से मैं लेखन और
पत्रकारिता के मार्ग में प्रवृत्त हुआ. उनमें चंडीगढ़ के प्रो. महेंद्र प्रताप,
प्रो. लक्ष्मी नारायण शर्मा, प्रो. मैथिली प्रसाद भारद्वाज और प्रो. वीरेंद्र
मेहंदीरत्ता प्रमुख हैं. जिन्हें देख कर मेरे बालमन में लेखन के बीज पड़े, उन डॉ.
प्रयाग दत्त जोशी को भी नमन. पढाई के दिनों से ही लेखन को जिन वरिष्ठ पत्रकारों ने
प्रेरित किया उनमें दैनिक ट्रिब्यून के विजय सहगल, राधेश्याम शर्मा, वीर प्रताप के
स्व. वीरेंद्र और स्वतंत्र पत्रकार केशवानंद ममगाईं प्रमुख थे. पत्रकारिता में आने
के बाद विश्वनाथ सचदेव, कमर वहीद नकवी, राम कृपाल सिंह, काका हरिओम, गणेश मंत्री,
मनमोहन सरल आदि का भरपूर स्नेह मिला. अपने संपादकों का मैं सदैव ऋणी रहूँगा
जिन्होंने मुझ पर विश्वास किया और भरपूर आजादी के साथ काम करने के अवसर दिए. डॉ.
धर्मवीर भारती, स्व. नारायण दत्त, राजेंद्र माथुर, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, विष्णु
खरे, सूर्य कान्त बाली, विद्यानिवास मिश्र, मधुसूदन आनंद, आलोक मेहता, लिया टरह्यून
और शशि शेखर प्रमुख हैं. बीच में मैं
खबरिया चैनलों में भी भाग्य आजमाने चला गया, लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि मैं
इसके लायक नहीं हूँ. इसलिए प्रिंट में लौट आया. यहाँ भी यदि श्री शशि शेखर मुझे
स्पैन से उठाकर अमर उजाला न ले गए होते तो शायद मुख्यधारा पत्रकारिता में मेरा
पुनर्वास न हो पाता. वे एक सख्त सम्पादक जरूर हैं, लेकिन काम करने की जो आजादी
उन्होंने मुझे दी, उसके लिए मैं सदैव उनका आभारी रहूँगा. अमर उजाला के सम्पादकीय
पेज पर हमने तरह-तरह के प्रयोग किये. मौक़ा पड़ने पर घनघोर दक्षिणपंथी से लेकर घनघोर
वामपंथी तक हर विचारधारा के लेखकों को प्रकाशित किया. यह पेज सचमुच एक उदार पेज
था. अमर उजाला जैसी आजादी और कहीं नहीं मिली. इसके लिए उसके मालिक स्व. अतुल माहेश्वरी
जी की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है.
अंत में मैं अपने
सहचर साथियों के प्रति भी आभार प्रकट करना चाहता हूँ. सर्वश्री सुभाष धूलिया, डॉ.
रजनी कान्त पाण्डेय, अनूप सेठी, बाल मुकुंद सिन्हा, अरुण दीक्षित, अनंग पाल सिंह, प्रकाश हिन्दुस्तानी, संजय
खाती, मुकुल, नीरेंद्र नागर, बलराम, मंजरी चतुर्वेदी, गिरिराज, सुरेश शर्मा, उपेन्द्र
प्रसाद, कल्लोल चक्रवर्ती, चंद्रकांत सिंह, राजीव कटारा आदि. अग्रज देवेन्द्र
मेवाड़ी, कथाकार बटरोही, पंकज बिष्ट, मंगलेश डबराल, प्रो. हरिमोहन शर्मा और प्रो. देव सिंह पोखरिया का स्नेह
भी निरंतर मिलता रहा है. और भी बहुत-से मित्र हैं, जिनके प्रेम की डोर मुझे यहाँ
तक खींच ले आयी.
मैं अपने चाहने
वालों को यह यकीन दिलाना चाहता हूँ कि पुरस्कार में मिली रकम का इस्तेमाल मैं
शिक्षा, पत्रकारिता और हिन्दी के उत्थान हेतु करूंगा. इसकी शुरुआत हो भी चुकी है.
अपने गाँव, जहां आज भी सड़क नहीं पहुँच पायी है, उसके स्कूल राजकीय उच्च विद्यालय,
सौगाँव के गरीब व होनहार बच्चों को ११ हजार रुपये की छात्रवृत्ति के रूप में. यह
भविष्य में भी जारी रहेगी. और भी बहुत सी योजनायें मन में हैं. पता नहीं कहाँ तक
पूरी हो पाती हैं! एक बार फिर से आभार.