राजनीति/ गोविन्द सिंह
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बार के चुनाव में बदलाव की जबरदस्त आंधी चल रही थी और नरेन्द्र मोदी इसके वाहक बने. लेकिन सवाल यह है कि ऐसा कैसे हुआ और कैसे उसे वोट में परिवर्तित किया जा सका? इसका एक ही कारण नजर आता है, देश का युवा वर्ग परिवर्तन का हथियार बना है. इस बार जिस तरह से १० से १५ फीसदी तक ज्यादा मतदान हुआ, उससे यह साबित हो गया कि बिना युवावर्ग की शिरकत के इतना बड़ा परिवर्तन संभव नहीं था. वे खुद तो सडकों पर आये ही, पुरानी पीढी को भी घरों से निकलने को विवश किया. भारत में १५ करोड़ तो पहली बार वोट डालने वाले मतदाता ही थे जो लोकतंत्र में अपनी हिस्सेदारी के जोश से लबरेज थे, उसके अलावा उतने ही लोग ३० से कम उम्र के थे. माना जा रहा है कि यही वर्ग मोदी की जीत के लिए जिम्मेदार है.
युवा वर्ग की इस भूमिका
को अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. हमने देखा है कि पिछले पांच
वर्षों में दुनिया भर में परिवर्तन की छटपटाहट दिखाई दी है. अरब देशों के अलावा
पूर्वी देशों में भी व्यवस्था परिवर्तन के लिए युवक सडकों पर उतर आये हैं. यद्यपि
जब-जब दुनिया में राजनीति ने करवट बदली है, क्रान्ति का बिगुल बजाया है, उसमें
निर्णायक भूमिका युवाओं की ही रही है. लेकिन हाल के वर्षों में जो परिवर्तन आये
हैं, उनमें युवा स्वयं भी सीधे-सीधे भागीदार रहे हैं. अरब देशों में हुई
क्रांतियाँ इसकी गवाह हैं.
हमारे यहाँ इतने बड़े
पैमाने पर युवाओं की भागीदारी १९७७ के बाद इसी बार हुई है. १९८९ और १९९१ के
चुनावों में भी युवाओं से जुड़े मुद्दे केंद्र में थे, लेकिन तब उनकी भागीदारी
खंडित थी. २०१० के बाद अरब देशों में लोकतंत्र के लिए युवाओं में एक नई कुलबुलाहट
सुनाई दी तो उसका असर भारत पर भी पडा. नए आर्थिक परिदृश्य और नई टेक्नोलोजी ने
विश्व भर के युवाओं को जोड़ने का काम किया. दुनिया भर में हमारे युवा कामयाबी के नए
कीर्तिमान गढ़ने लगे. बहुत तेजी से अन्य देशों के साथ आवागमन भी बढ़ने लगा. जब वे
उन्नत देशों के साथ अपनी तुलना करते तो पाते कि हमारी तमाम खामियों के लिए हमारी
राजनीति दोषी है. हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दम भरते हैं, लेकिन
हकीकत यह है कि हमारा लोकतंत्र भीतर से खोखला होता जा रहा है. उसमें वंशवाद है, भाई-भतीजावाद
है, आम आदमी खस्ताहाल है. हमारे यहाँ आर्थिक सुधार लागू हुए लेकिन उनका सुफल केवल
मुट्ठी भर लोगों ने चखा. लोकतांत्रिक पूंजीवाद की जगह हमने क्रोनी कैपिटलिज्म यानी
याराना पूंजीवाद विकसित किया. कहने को कोटा-परमिट राज ख़त्म जरूर हुआ लेकिन
इन्स्पेक्टर राज अब भी दूसरे रूप में बरकरार है. कहाँ तो उम्मीद थी कि आर्थिक
सुधारों की वजह से भ्रष्टाचार दूर होगा, कहाँ इस नव-पूंजीवाद ने भ्रष्टाचार को सातवें
आसमान पर पहुंचा दिया. इससे हमारे युवा वर्ग में व्यवस्था के प्रति जबरदस्त मोहभंग
की स्थिति पैदा कर दी. शुरुआत में उसने राजनीति से पूरी तरह से मुख मोड़ लिया.
लेकिन जब उसने देखा कि अपनी छद्म राजनीति की वजह से उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
कितना नींचा देखना पड़ता है, तो उसने भी राजनीति में शिरकत करने का फैसला किया.
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कुल मिला कर यह जीत
युवाओं की जीत है. देश की राजनीति का ढर्रा बदल चुका है. पुराने फ़ॉर्मूले
अप्रासंगिक हो चुके हैं. जाति-धर्म और साम्प्रदायिकता की जगह अब सिर्फ सुशासन और
विकास की राजनीति चलेगी. जो काम करेगा, वह टिका रहेगा, जो छद्म मुद्दे उछालेगा,
उसका कोई नामलेवा नहीं बचेगा. (अमर उजाला, २० मई, २०१४ से साभार)
शानदार और सार्थक कलम से गोविंद सिंह ने सटीक लेख लिखा है. युवा ही है तो राष्ट्र की तकदीर बदल सकता है
जवाब देंहटाएंशानदार और सार्थक कलम से गोविंद सिंह ने सटीक लेख लिखा है. युवा ही है तो राष्ट्र की तकदीर बदल सकता है
जवाब देंहटाएंBaigar तथ्यों के सतही लेखन
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