मंगलवार, 3 जनवरी 2012

जय हो, नया साल शुभ हो

हिंदू समाज की पाचन शक्ति की दाद देनी पड़ेगी। दुनिया का कोई भी चलन यहां पहुंच कर अपने मूल स्‍वभाव को बदलने पर विवश हो जाता है। अब नए साल को ही लीजिए, क्‍या गांव क्‍या शहर, जम कर मनाया जा रहा है नया साल। बच्‍चे-बूढ़े जवान सब कह रहे हैं- हैप्‍पी न्‍यू ईयर। एक जमाना था, जब लोग कहते थे कि हिंदुओं का नया साल चैत में शुरू होता है, यह नया साल तो अंग्रेजों का है, इससे हमारा क्‍या। कोई बीस साल पहले की बात है, मैंने एक सज्‍जन को नए साल पर हैप्‍पी न्‍यू ईयर कहा तो उन्‍होंने तपाक से कहा कि यह तो हमारा नया साल नहीं है, हमें तो चैत के महीने में हैप्‍पी न्‍यू ईयर कहना। एक जमाना वह भी था, जब चैत्र के पहले दिन संवत्‍सर पाठ करने के लिए पंडित जी गांव-गांव आया करते थे और नए साल का गाल बता कर जाते थे.
लेकिन अब भाई लोगों ने अंग्रेजी न्यू ईअर का ही हिंदूकरण कर दिया है। इस बार पहली तारीख को दिल्ली से हल्द्वानी आते हुए इस बात की पुष्टि हुई! चूंकि रविवार का दिन था, इसलिए लोग नए साल के पहले दिन लोग मंदिरों की तरफ उमड़ पड़े थे. दिल्ली मन भैरों मंदिर, झंडेवाला मंदिर, हरे कृष्ण मंदिर, हनुमान मंदिर और जगह जगह छोटे-मोटे मंदिरों में जबरदस्त भीड़ थी. रेलवे स्टेशन के लिए ऑटो लिया तो जगह जगह ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा. पता चला कि लोग आज नए साल पर मंदिरों की ओर  उमड़ पड़े हैं. यानी अब अंग्रेजों के नए साल को हमने हिंदू धर्म में लपेट लिया है.
दिल्ली से हल्द्वानी पहुंचा तो दूसरे दिन यानी नए साल के पहले कार्य दिवस पर ऑफिस में सुन्दर कांड का पाठ कराया गया. करीब डेढ़ घंटे तक चली इस पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद बांटा गया और लड्डुओं का भोग लगा. धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, का जयघोष हुआ. सुना कि और दफ्तरों में भी कुछ कुछ ऐसे ही आयोजन हुए. यानी अब घर-दफ्तर सब जगह नए वर्ष ने धार्मिक आयोजन का रूप ले लिया है. यही हिंदू धर्मं की खासियत है.         

6 टिप्‍पणियां:

  1. सर नए साल का एक अलग पक्ष सामने आया. सुंदर पोस्ट के लिए बधाइयाँ. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.

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  2. Strange yet true... a unique way to look at our changing times...

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  3. गांवों में दूध, दही, गुड़ भले ही न मिले, पर छोटी छोटी दुकानों पर कोक, पेप्सी और कैडबरी मिल ही जाते हैं. सुंदर पोस्ट के लिए बधाइयाँ सर.

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  4. आपने ठीक ही नोट किया, हिन्दू धर्म उत्सवमना है। दर्शन, चिंतन में विभेदकारी नही। यद्यपि यह चिंता की बात जरूर है कि धर्म-दर्शन की शिक्षा के प्रति उपेक्षा नई पीढ़ियों को हल्का और खाली-सा बना रही है। वे विदेशी बाह्याचार से पूरित हैं, किन्तु ज्ञानसंपृक्त जीवन-आचरण से उनका परिचय कितना है - यह वास्तविक शोध का विषय है।

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  5. नया साल तो यहाँ भी ऐसे ही मनाया गया भाई. उज्जैन में महाकाल मंदिर में दो लाख भक्त पहुँचे थे और इंदौर के खजराना गणेश मंदिर में भी यही हाल था. होटलों, खाऊ ठिकानों का भी हाल ठीक था. मदिरलयों और मंदिरों में समान श्रद्धा से लोग गये.

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  6. धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
    ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना भी अधर्म है ।
    कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
    धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
    धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri

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