हिंदू समाज की पाचन शक्ति की दाद देनी पड़ेगी। दुनिया का कोई भी चलन यहां पहुंच कर अपने मूल स्वभाव को बदलने पर विवश हो जाता है। अब नए साल को ही लीजिए, क्या गांव क्या शहर, जम कर मनाया जा रहा है नया साल। बच्चे-बूढ़े जवान सब कह रहे हैं- हैप्पी न्यू ईयर। एक जमाना था, जब लोग कहते थे कि हिंदुओं का नया साल चैत में शुरू होता है, यह नया साल तो अंग्रेजों का है, इससे हमारा क्या। कोई बीस साल पहले की बात है, मैंने एक सज्जन को नए साल पर हैप्पी न्यू ईयर कहा तो उन्होंने तपाक से कहा कि यह तो हमारा नया साल नहीं है, हमें तो चैत के महीने में हैप्पी न्यू ईयर कहना। एक जमाना वह भी था, जब चैत्र के पहले दिन संवत्सर पाठ करने के लिए पंडित जी गांव-गांव आया करते थे और नए साल का गाल बता कर जाते थे.
लेकिन अब भाई लोगों ने अंग्रेजी न्यू ईअर का ही हिंदूकरण कर दिया है। इस बार पहली तारीख को दिल्ली से हल्द्वानी आते हुए इस बात की पुष्टि हुई! चूंकि रविवार का दिन था, इसलिए लोग नए साल के पहले दिन लोग मंदिरों की तरफ उमड़ पड़े थे. दिल्ली मन भैरों मंदिर, झंडेवाला मंदिर, हरे कृष्ण मंदिर, हनुमान मंदिर और जगह जगह छोटे-मोटे मंदिरों में जबरदस्त भीड़ थी. रेलवे स्टेशन के लिए ऑटो लिया तो जगह जगह ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा. पता चला कि लोग आज नए साल पर मंदिरों की ओर उमड़ पड़े हैं. यानी अब अंग्रेजों के नए साल को हमने हिंदू धर्म में लपेट लिया है.
दिल्ली से हल्द्वानी पहुंचा तो दूसरे दिन यानी नए साल के पहले कार्य दिवस पर ऑफिस में सुन्दर कांड का पाठ कराया गया. करीब डेढ़ घंटे तक चली इस पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद बांटा गया और लड्डुओं का भोग लगा. धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, का जयघोष हुआ. सुना कि और दफ्तरों में भी कुछ कुछ ऐसे ही आयोजन हुए. यानी अब घर-दफ्तर सब जगह नए वर्ष ने धार्मिक आयोजन का रूप ले लिया है. यही हिंदू धर्मं की खासियत है.