tag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post8320191154306504811..comments2024-03-01T00:20:59.919-08:00Comments on हल्द्वानी लाइव Haldwani Live: जब मंगलेश जी शास्त्रीय गायन करते हैंGovind Singh(गोविन्द सिंह)http://www.blogger.com/profile/09817516884809588897noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-2715308871905780432012-08-03T04:12:54.319-07:002012-08-03T04:12:54.319-07:00गोविंद सर आपने दो तीन वर्ष पुरानी एक शाम की याद दि...गोविंद सर आपने दो तीन वर्ष पुरानी एक शाम की याद दिला दी। प्रणय कृष्ण( प्रणय दा) को देवीशंकर अवस्थी सम्मान मिला था। उसी की खुशी में लोग इकठ्ठा हुए। रसरंजन थो़ड़ा ज्यादा हो गया था। विष्णु खरे जी ने गाना शुरु किया। गुलो में रंग भरे... फिर मंगलेश जी ने। इसी बीच जाने क्या हो हुआ शायद किसी ने कोई चुटकी ली और विष्णु जी नाराज हो गए। गाना गालियों में तब्दील हुआ. हर तरफ हंसी. मंगलेश जी जब संयत हुए, तो कहने लगे कि गाना तो आप लोग रोज ही सुन लेते होंगे. आज जो सुना वह कभी-कभी ही सुनने को मिलता है. <br />नीरज सिंहNiraj Singhhttps://www.blogger.com/profile/00539171136818737713noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-28779563224790092122012-04-08T04:18:26.623-07:002012-04-08T04:18:26.623-07:00गोविन्द सर,
ये जानकारी ही आनंद भर रही है...वो शाम ...गोविन्द सर,<br />ये जानकारी ही आनंद भर रही है...वो शाम किस कदर ज़िंदा हो गई होगी इसका अंदाज़ा मिल रहा है....dinesh kandpalhttps://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-8883181584421673452012-04-04T02:07:40.620-07:002012-04-04T02:07:40.620-07:00डा. साहब नमस्ते।
बहुत पहले करीब 1987-88 में मंगलेश...डा. साहब नमस्ते।<br />बहुत पहले करीब 1987-88 में मंगलेश जी हमारे ऑफिस अमेरिकन सेंटर दो-चार बार आए थे। उस समय मधु बी. जोशी जी हिंदी संपादक थीं और उन्होंने आयोवा राइटर्स प्रोग्राम में उन्हें आईवी नामित किया था। मुझे याद है मंगलेश जी रुक-रुककर बोला करते थे। मैं मधु जी के असिस्टेंट के रूप में कार्यरत था। मुझे यह भी ध्यान है मंगलेश जी ने मेरे बारे में पूछा था। बाद में उनकी रचनाएं जनसत्ता में पढ़ने को मिल जाती थीं। मंगलेश जी की गायन की प्रतिभा का भान नहीं था। आपके इस ब्लॉग माध्यम से यह जानकारी भी मिली बड़े सौभाग्य की बात है। मैं आपके लेख रुचि के साथ पढ़ता रहता हंू। ब्लॉग में भी और प्रिंट अखबारों में भी।<br />महिपालAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-71808609431812685022012-03-31T01:38:08.205-07:002012-03-31T01:38:08.205-07:00मेरा उपस्थित रहना तो सम्भव नहीं था, लेकिन आपने बह...मेरा उपस्थित रहना तो सम्भव नहीं था, लेकिन आपने बहुत सुन्दर बिम्ब प्रस्तुत किया है। लगा कि वहॉं मौजूद थी।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-10205512149652261472012-03-29T04:48:04.574-07:002012-03-29T04:48:04.574-07:00आपके लेख से एक बात जो मेरी समझ में आ रही है , वह इ...आपके लेख से एक बात जो मेरी समझ में आ रही है , वह इस बात को साबित करती है कि साहित्य और संगीत एक दूसरे के पूरक हैं... और जब मक्सद आनन्द लेने का हो तो बात कुछ और ही होती है ... उस आनन्द के एक एक पल को जीने वालों को ढेरों बधाईयां ... भुवन चन्द्र तिवारीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-36435550676754996522012-03-26T10:08:50.502-07:002012-03-26T10:08:50.502-07:00संजीव, यह बात आपने सही लिखी कि ये दोनों लेखक डेमोक...संजीव, यह बात आपने सही लिखी कि ये दोनों लेखक डेमोक्रेट हैं. ऊंचाई प्राप्त कर लेना एक बात है लेकिन डेमोक्रेट होना वाकई मुश्किल है. बहुत कम लोग होते हैं जो दूसरों की उपस्थिति को सहन कर पाते हैं.गोविंद सिंहhttp://haldwanilive.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-18403986240515509902012-03-24T09:00:19.571-07:002012-03-24T09:00:19.571-07:00सर, आपको हमेशा संपादकीय विषयों पर पढ़ा और अक्सर आप...सर, आपको हमेशा संपादकीय विषयों पर पढ़ा और अक्सर आपसे बात भी इसी तरह के कामकाजू किस्म के विषयों पर हुई। पहली बार आपका इस तरह का लेखन पढ़ा। आनंद आ गया। इस तरह का लेखन अपने आपमें हमारे समय के सांस्कृतिक दस्तावेज होते हैं। मंगलेश और वीरेन दा का साथ वैसे भी संगीतमय होता है। तिसपर मंगलेश दा का गायन, सोने पर सुहागा। एक बात जो मुझे इन दोनों के सानिंध्य में हमेशा महसूस हुई वह यह है दोनों गजब के डेमोके्रट हैं। यह जहां भी होते हैं तो पूरे माहौल को नए-पुराने सभी के लिए सहज और सरल बना देते हैं। ये लोग अपनी उपस्थिति मात्र से बेवजह के मनोवैज्ञानिक भेद मिटा देते हैं । वाकई यह हमारे वक्तों के बड़े व्यक्तित्व हैं जो सहजता से संजीदगी सिखा देते हैं।Sanjeev Mathurnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-87069166303837822172012-03-24T03:52:32.512-07:002012-03-24T03:52:32.512-07:00अजय ढौंडियाल:
"वाह सर..क्या बात है....इस मंड...अजय ढौंडियाल: <br />"वाह सर..क्या बात है....इस मंडली में हमको भी जरूर होना चाहिए था....कुछ झोड़े, चांचरी, भगनौल हम भी सुनाते...."Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-66493503814192200802012-03-24T03:42:49.627-07:002012-03-24T03:42:49.627-07:00वेद विलास उनियाल लिखते हैं:
"मंगलेशजी शास्त्...वेद विलास उनियाल लिखते हैं:<br /><br />"मंगलेशजी शास्त्रीय गायन की समझ रखते हैं यह बात पता थी। वो गाते भी हैं, यह मालूम नहीं था। कुछ ऐसा ही मिजाज राजीव नयंन बहुगुणाजी के साथ भी है। हारमोनियम लेकर सुर ताल मिलाते हैं। अफसोस पत्रकारिता की नई पीढी़ मिनिस्टर और डीएम से मिलकर ही अपने को धन्य समझती है। गीत संगीत, साहित्य, कला और लोकजीवन से बहुत दूर होती चली जा रही है।"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-37770202873669814382012-03-24T00:43:08.846-07:002012-03-24T00:43:08.846-07:00भाई साहब मैं अब आपके द्वारा लिखे गये शब्दों को पढ़...भाई साहब मैं अब आपके द्वारा लिखे गये शब्दों को पढ़ रहा हूँ तो मुझे यह अनुभूति हो रही है, कि मैं भी वहीं उपस्थित हूँ और मंगलेश जी का गायन अभी भी चल रहा है। लेकिन क्या बताऊं भौतिक रूप से उपस्थित होने के सुख से मैं वंचित रह गयाRahees Singhhttps://www.blogger.com/profile/12426649947719949624noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-82441231772614357242012-03-23T10:15:42.162-07:002012-03-23T10:15:42.162-07:00शिव प्रसाद जोशी लिखते हैं:
त्रिनेत्रजी, सुभाषजी, व...शिव प्रसाद जोशी लिखते हैं:<br />त्रिनेत्रजी, सुभाषजी, वीरेनजी, प्रभातजी, मंगलेशजी. मुझे भी इन महानुभावों को नज़दीक से देखने जानने का सौभाग्य मिला है. बहुत निराले लोग हैं और विशिष्ट. और अपने ढंग के तूफ़ानी. आप कितने प्रसन्नचित्त रहे होंगे गोविंदजी, आपकी पोस्ट से समझ आता है!!<br />आपकी कोशिश से ये लोग एक जगह इकट्ठा हुए, देहरादून में इसकी ख़बर ही नहीं लगी.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-15935766088151396082012-03-23T05:40:48.506-07:002012-03-23T05:40:48.506-07:00उस रात को जब आपका फोन आया कि 'मंगलेश जी आपसे ब...उस रात को जब आपका फोन आया कि 'मंगलेश जी आपसे बात करना चाहते हैं' और मंगलेश जी ने कहा, 'एकाएक कहाँ गायब हो गए बटरोहीजी, हम लोग आपको मिस कर रहे हैं', तो मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ. मगर वह गलती इसलिए नहीं थी कि अगर मैं उनका सत्संग करता तो अगले कई दिनों तक चारपाई में होता. मगर उनके सत्संग की पुराणी यादें तो अभी भी है. उस एक शाम के लिए क्या कुछ दिन कुर्बान नहीं किये जा सकते थे ?<br />आपको धन्यवाद कि आपने उन पलों की इतनी खूबसूरती के साथ याद दिलाई.batrohihttps://www.blogger.com/profile/07370930712240772275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-88832966557131756752012-03-23T05:09:13.319-07:002012-03-23T05:09:13.319-07:00गोविन्द जी,
मैं इस दुर्लभ अवसर से वंचित रह गया, य...गोविन्द जी, <br />मैं इस दुर्लभ अवसर से वंचित रह गया, यह अफसोस सदैव बना रहेगा.Prakashhindustani@bloggspot.comhttps://www.blogger.com/profile/16199150636593097566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-214435522096949601.post-8729145038877953542012-03-22T06:52:15.476-07:002012-03-22T06:52:15.476-07:00उस शाम का अत्यंत जीवंत वर्णन किया है आपने। अब भी म...उस शाम का अत्यंत जीवंत वर्णन किया है आपने। अब भी मंगलेश जी का वह गायन कानों में गूंजता है....‘रंग दे, रंग दे रे रंगरेजवा...’। हां, उनके शरीर की एक-एक कोशिका गा रही थी और हमारे शरीर की एक-एक कोशिका उनके मदमाद सारंग राग को सुन कर झूम रही थी। तभी, मैं रह नहीं पाया और आलाप भरा। आरोह-अवरोह सुन कर मंगलेश जी बोले राग यमन! अब मुझे क्या पता? मैं तो दुष्यंत की गजल ‘कहां तो तै था चरागां हरेक घर के लिए’ की उड़ान भरना चाहता था, पर फिर मंगलेश जी के गायन में डूब गया।...मुझे भी उनकी कुछ महफिलों की सुर-बरखा में भीगने का सौभाग्य मिला है। <br />हल्द्वानी की वह एक यादगार शाम थी...Devendra Mewarihttp://dmewari.merapahad.innoreply@blogger.com